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Thursday 29 March 2018

🙏👆🏻🙊🙉🙈 उत्तर प्रदेश में 5 बड़े शहरों के बिजली व्यवस्था के निजीकरण का प्रस्ताव सरकार की कैबिनेट में पास की गई है। इसके विरोध में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से बात करते हुए एवं सभा को संबोधित करते हुए। 1. चाणक्य ने कहा था - अगर राज्य का राजा व्यापारी हो जाये, तो समझो राज्य के पतन की शुरुआत हो गयी। 2. संवैधानिक तौर पर अब बिजली एक मूलभूत आवश्यकता है। क्या इसे सिर्फ फायदे और नुकसान में देखा जाना उचित है? या फिर इसे जनकल्याण की भावना से भी देखना होगा। 3. अगर निजीकरण की वजह सरकार को होने वाले घाटे से है तो निजीकरण की शुरआत उन क्षेत्रों से क्यों नही जहां वास्तव में सरकार को घाटा हो रहा है? ग्रामीण क्षेत्रो में लाइन लॉस ज्यादा है, जबकि जिस 5 शहरों के निजीकरण का प्रस्ताव पास किया गया है, वहां या तो फायदे में है या मामूली नुकसान। क्या बिजली विभाग में हो रहे नुकसान के लिए विभाग के प्रति सरकार की उपेक्षा का शिकार होना नही है? आज भी न जाने कितने पद रिक्त हैं। आज भी कर्मचारी ठेला सीढ़ी से काम कर रहे हैं। सीमित संसाधन उपलब्ध कराए गए हैं। 4. अगर निजीकरण की वजह इलेक्ट्रिकल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवेलोप करना है, ताकि निजी कंपनी निवेश कर इंफ्रास्ट्रकचर डेवेलोप कर सके। तो फिर सरकार ने इन 5 बड़े शहरों को क्यों चुना जहां पिछले 4 सालों में सरकार ने करोड़ों खर्च कर इंफ्रास्ट्रक्चर आलरेडी डेवेलोप किया हुआ है? जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में अभी इसकी जरूरत है। 5. अगर निजीकरण की वजह तथाकथित रूप से सरकारी कर्मचारी की कामचोरी है, तो सरकार अभी भी यह बोलकर अपना पीठ थपथपाती है, कि मैंने 1 साल में हज़ारों मजरों का विद्युतीकरण कर दिया, लाखों बिजली के संयोजन दे दिए, शहरों में 24, तहसील में 20 और ग्रामीण क्षेत्र में 18 घंटे बिजली दिया है। ये सभी तो इन्ही सरकारी कर्मचारी के कारण संभव हो पाया है। वास्तविकता ये है कि आज की तारीख में कर्मचारियों की इतनी कमी है कि लगभग 80% कर्मचारी अकेले ओवरटाइम ड्यूटी कर रहे हैं। आप कोई भी बिजली के दफ्तर 7 बजे से पहले बंद नही पायेंगे। 6. अगर निजीकरण की वजह बिजली चोरी है, तो क्या बिजली चोरी एक तकनीकी विषय से ज्यादा लॉ एंड आर्डर का विषय नही है? बिजली चोरी से संबंधित प्राथिमिकी एक एक जनपद में हज़ारों से ज्यादा लंबित है। क्या इसमे राजनीतिक हस्तक्षेप से इनकार किया जा सकता है? ऐसा क्यों है कि उत्तर प्रदेश के उन जनपद में ज्यादा बिजली चोरी या फिर ज्यादा लाइन लॉस हैं जहाँ तथा कथित रूप से लॉ एंड आर्डर की स्थिति ज्यादा खराब है। क्या इसके लिए सिर्फ बिजलीकर्मियों को दोषी ठहराना जायज है? 7. अगर निजीकरण की वजह तथाकथित तौर पर करप्शन है, तो क्या इसे दूर करने की जिम्मेदारी से सरकार बच सकती है? एक तरफ तो सरकार दावा करती है कि हमारी सरकार जीरो टॉलरेंस पर काम कर रही है, तो फिर इस बहाने का सहारा क्यों? क्या निजी कंपनी इस बात की गैरन्टी है कि वो करप्शन मुक्त है? अक्सर बोलते हुए सुना है कि निजीकरण एक one time corruption की व्यवस्था है। क्या इसमे जरा भी सच्चाई नही? कई निजी कंपनी (माल्या, नीरव और न जाने कई) करोड़ों रुपया बैंक का डूबा कर भाग गए, क्या वो निजी कंपनी नही थे। 8. तथाकथित तौर पर करप्शन कई क्षेत्रों में है, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस, न्याय व्यवस्था, पत्रकारिता, प्रशासन और भी न जाने क्या क्या, क्या सबका निजिकरण कर सरकार को सो जाना चाहिए? या फिर उससे लड़ना चाहिए और खत्म करना चाहिए? 9. अगर निजीकरण ही विकास की सीढ़ी है तो आज हमारा देश शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में इतना पिछड़ा क्यों है? जबकि हमारे यहां निजी स्कूल और अस्पताल की कमी नही? निश्चय ही कुछ निजी संस्थानों की सुविधायिएँ बेहतर है, पर क्या उसकी महंगाई 80% भारतीयों की पहुंच से दूर नहीं? कुछ सरकारी विद्यालय जैसे JNU, सैनिक स्कूल, केंद्रीय विद्यालय आदि की परफॉर्मेंस निजी स्कूल से बेहतर नही है? निश्चय ही कुछ सरकारी स्कूल की स्थिति काफी निराशाजनक है, क्या इसके लिए सरकार की कोई जिम्मेदारी नही? जिस प्रकार शिक्षा, स्वास्थ्य हमारे मूलभूत आवश्यकता है, ठीक उसी प्रकार से बिजली भी हरेक नागरिक की मूलभूत आवश्यकता है। यह जनकल्याण से जुड़ा है, इसके लिए हम सरकार चुनते हैं, ताकि जनकल्याण से जुड़े कार्य सरकार कर सके। इसे लाभ और घाटे से ऊपर सोचकर देखना होगा और जो भी कमी है, उसे सरकार को ही दूर करना होगा। अथवा सरकार की आवश्कता ही क्या है? देश तो आजादी से पूर्व एक निजी कंपनी (ईस्ट इंडिया) कंपनी चला ही रहे थे। (बिजली व्यवस्था भी 1969 तक निजी कंपनी ही देख रही थी, उस वक़्त जनकल्याण से जोड़कर इसे सरकार ने लिया ही क्यों था।) मैं निजीकरण का विरोधी नही हूँ। इसे बढ़ावा देना चाहिए। मेक इन इंडिया काफी सराहनीय है। आईये, प्रोडक्ट बनाइये, नए कांसेप्ट लाईये, व्यापार बढाईये। पर ये नही किया जा सकता कि सरकार इसे अपनी बैशाखी की तरह उपयोग करें, सरकार अपने कर्तव्य से बचने का उपाय ढूंढे। जनकल्याण को भी निजी हाथों में बेच दे। फिर सवाल यही आएगा कि हम सरकार क्यों चुनते है? अतः बिजली, रेलवे एवं बैंको का निजीकरण बिल्कुल बंद होना चाहिए। सौजन्य से - इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन डिवीज़न (ग्रमीण), सोरों कासगंज। 🙏डी वी वी एन एल समस्त परिवार🙏

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उत्तर प्रदेश में 5 बड़े शहरों के बिजली व्यवस्था के निजीकरण का प्रस्ताव सरकार की कैबिनेट में पास की गई है।  इसके विरोध में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से बात करते हुए एवं सभा को संबोधित करते हुए।

1. चाणक्य ने कहा था - अगर राज्य का राजा व्यापारी हो जाये, तो समझो राज्य के पतन की शुरुआत हो गयी।

2. संवैधानिक तौर पर अब बिजली एक मूलभूत आवश्यकता है। क्या इसे सिर्फ फायदे और नुकसान में देखा जाना उचित है? या फिर इसे जनकल्याण की भावना से भी देखना होगा।

3. अगर निजीकरण की वजह सरकार को होने वाले घाटे से है तो निजीकरण की शुरआत उन क्षेत्रों से क्यों नही जहां वास्तव में सरकार को घाटा हो रहा है? ग्रामीण क्षेत्रो में लाइन लॉस ज्यादा है, जबकि जिस 5 शहरों के निजीकरण का प्रस्ताव पास किया गया है, वहां या तो फायदे में है या मामूली नुकसान। क्या बिजली विभाग में हो रहे नुकसान के लिए विभाग के प्रति सरकार की उपेक्षा का शिकार  होना नही है? आज भी न जाने कितने पद रिक्त हैं। आज भी कर्मचारी ठेला सीढ़ी से काम कर रहे हैं। सीमित संसाधन उपलब्ध कराए गए हैं।

4. अगर निजीकरण की वजह इलेक्ट्रिकल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवेलोप करना है, ताकि निजी कंपनी निवेश कर इंफ्रास्ट्रकचर डेवेलोप कर सके। तो फिर सरकार ने इन 5 बड़े शहरों को क्यों चुना जहां पिछले 4 सालों में सरकार ने करोड़ों खर्च कर इंफ्रास्ट्रक्चर आलरेडी डेवेलोप किया हुआ है? जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में अभी इसकी जरूरत है।

5. अगर निजीकरण की वजह तथाकथित रूप से सरकारी कर्मचारी की कामचोरी है, तो सरकार अभी भी यह बोलकर अपना पीठ थपथपाती है, कि मैंने 1 साल में हज़ारों मजरों का विद्युतीकरण कर दिया, लाखों बिजली के संयोजन दे दिए, शहरों में 24, तहसील में 20 और ग्रामीण क्षेत्र में 18 घंटे बिजली दिया है। ये सभी तो इन्ही सरकारी कर्मचारी के कारण संभव हो पाया है। वास्तविकता ये है कि आज की तारीख में कर्मचारियों की  इतनी कमी है कि लगभग 80% कर्मचारी अकेले ओवरटाइम ड्यूटी कर रहे हैं। आप कोई भी बिजली के दफ्तर 7 बजे से पहले बंद नही पायेंगे।

6. अगर निजीकरण की वजह बिजली चोरी है, तो क्या बिजली चोरी एक तकनीकी विषय से ज्यादा लॉ एंड आर्डर का विषय नही है? बिजली चोरी से संबंधित प्राथिमिकी एक एक जनपद में हज़ारों से ज्यादा लंबित है। क्या इसमे राजनीतिक हस्तक्षेप से इनकार किया जा सकता है?
ऐसा क्यों है कि उत्तर प्रदेश के उन जनपद में ज्यादा बिजली चोरी या फिर ज्यादा लाइन लॉस हैं जहाँ तथा कथित रूप से लॉ एंड आर्डर की स्थिति ज्यादा खराब है। क्या इसके लिए सिर्फ बिजलीकर्मियों को दोषी ठहराना जायज है?

7. अगर निजीकरण की वजह तथाकथित तौर पर करप्शन है, तो  क्या इसे दूर करने की जिम्मेदारी से सरकार बच सकती है? एक तरफ तो सरकार दावा करती है कि हमारी सरकार जीरो टॉलरेंस पर काम कर रही है, तो फिर इस बहाने का सहारा क्यों?
क्या निजी कंपनी इस बात की गैरन्टी है कि वो करप्शन मुक्त है?
अक्सर बोलते हुए सुना है कि निजीकरण एक one time corruption की व्यवस्था है। क्या इसमे जरा भी सच्चाई नही? कई निजी कंपनी (माल्या, नीरव और न जाने कई) करोड़ों रुपया बैंक का डूबा कर भाग गए, क्या वो निजी कंपनी नही थे।

8. तथाकथित तौर पर करप्शन कई क्षेत्रों में है, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस, न्याय व्यवस्था, पत्रकारिता, प्रशासन और भी न जाने क्या क्या, क्या सबका निजिकरण कर सरकार को सो जाना चाहिए? या फिर उससे लड़ना चाहिए और खत्म करना चाहिए?

9. अगर निजीकरण ही विकास की सीढ़ी है तो आज हमारा देश  शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में इतना पिछड़ा क्यों है? जबकि हमारे यहां निजी स्कूल और अस्पताल की कमी नही? निश्चय ही कुछ निजी संस्थानों की सुविधायिएँ बेहतर है, पर क्या उसकी महंगाई 80% भारतीयों की पहुंच से दूर नहीं? कुछ सरकारी विद्यालय जैसे JNU, सैनिक स्कूल, केंद्रीय विद्यालय आदि की परफॉर्मेंस निजी स्कूल से बेहतर नही है? निश्चय ही कुछ सरकारी स्कूल की स्थिति काफी निराशाजनक है, क्या इसके लिए सरकार की कोई जिम्मेदारी नही?

    जिस प्रकार शिक्षा, स्वास्थ्य हमारे मूलभूत आवश्यकता है, ठीक उसी प्रकार से बिजली भी हरेक नागरिक की मूलभूत आवश्यकता है। यह जनकल्याण से जुड़ा है, इसके लिए हम सरकार चुनते हैं, ताकि जनकल्याण से जुड़े कार्य सरकार कर सके। इसे लाभ और घाटे से ऊपर सोचकर देखना होगा और जो भी कमी है, उसे सरकार को ही दूर करना होगा। अथवा सरकार की आवश्कता ही क्या है? देश तो आजादी से पूर्व एक निजी कंपनी (ईस्ट इंडिया) कंपनी चला ही रहे थे। (बिजली व्यवस्था भी 1969 तक निजी कंपनी ही देख रही थी, उस वक़्त जनकल्याण से जोड़कर इसे सरकार ने लिया ही क्यों था।)

मैं  निजीकरण का विरोधी नही हूँ। इसे बढ़ावा देना चाहिए। मेक इन इंडिया काफी सराहनीय है। आईये, प्रोडक्ट बनाइये, नए कांसेप्ट लाईये, व्यापार बढाईये। पर ये नही किया जा सकता कि सरकार इसे अपनी बैशाखी की तरह उपयोग करें, सरकार अपने कर्तव्य से बचने का उपाय ढूंढे। जनकल्याण को भी निजी हाथों में बेच दे। फिर सवाल यही आएगा कि हम सरकार क्यों चुनते है?

अतः  बिजली, रेलवे एवं बैंको का निजीकरण बिल्कुल बंद होना चाहिए।
सौजन्य से -
इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन डिवीज़न
              (ग्रमीण), सोरों
                   कासगंज।
    🙏डी वी वी एन एल समस्त परिवार🙏