Translate

Friday 16 February 2018

How to know meena samaj problems

मीणा-मीना विवाद: 'मीना' जाति प्रमाणपत्र जारी करने पर लगी रोक

मीणा' और 'मीना' विवाद मामले में अब नया मोड़ सामने आ गया है। राज्य सरकार ने पहले से 'मीणा' स्पेलिंग के जाति प्रमाण पत्रों में सुधार कर 'मीना' स्पेलिंग के जाति के प्रमाण-पत्र जारी करने पर रोक लगा दी है। इसे लेकर समाज कल्याण विभाग के प्रमुख शासन सचिव सुदर्शन सेठी ने सभी कलेक्टरों को पत्र भी भेज दिया। पत्र में आगामी आदेश तक मीणा की जगह मीना जाति में बदल कर नया प्रमाण पत्र देने पर रोक लगा दी गई है। विभाग ने ये फैसला हाईकोर्ट में मीणा और मीना जाति की विचाराधीन याचिका के चलते लिया है।

मीणा-मीना विवाद: 'मीना' जाति प्रमाणपत्र जारी करने पर लगी रोक
मीणा' और 'मीना' विवाद मामले में अब नया मोड़ सामने आ गया है। राज्य सरकार ने पहले से 'मीणा' स्पेलिंग के जाति प्रमाण पत्रों में सुधार कर 'मीना' स्पेलिंग के जाति के प्रमाण-पत्र जारी करने पर रोक लगा दी है। इसे लेकर समाज कल्याण विभाग के प्रमुख शासन सचिव सुदर्शन सेठी ने सभी कलेक्टरों को पत्र भी भेज दिया। पत्र में आगामी आदेश तक मीणा की जगह मीना जाति में बदल कर नया प्रमाण पत्र देने पर रोक लगा दी गई है। विभाग ने ये फैसला हाईकोर्ट में मीणा और मीना जाति की विचाराधीन याचिका के चलते लिया है।
ETV Rajasthan
Updated: October 6, 2014, 8:18 AM IST
मीणा' और 'मीना' विवाद मामले में अब नया मोड़ सामने आ गया है। राज्य सरकार ने पहले से 'मीणा' स्पेलिंग के जाति प्रमाण पत्रों में सुधार कर 'मीना' स्पेलिंग के जाति के प्रमाण-पत्र जारी करने पर रोक लगा दी है। इसे लेकर समाज कल्याण विभाग के प्रमुख शासन सचिव सुदर्शन सेठी ने सभी कलेक्टरों को पत्र भी भेज दिया। पत्र में आगामी आदेश तक मीणा की जगह मीना जाति में बदल कर नया प्रमाण पत्र देने पर रोक लगा दी गई है। विभाग ने ये फैसला हाईकोर्ट में मीणा और मीना जाति की विचाराधीन याचिका के चलते लिया है।

इसमें कहा गया कि जाति प्रमाण पत्र जारी करने वाले अधिकारियों द्वारा मीना और मीणा दोनों को एक ही जाति या वर्ग का मानकर अनुसूचित जनजाति के प्रमाण पत्र जारी किए जाते रहे हैं। ऐसे में जिन व्यक्तियों को मीणा जाति का प्रमाण पत्र दिया हुआ है, उन्हें मीना जाति में परिवर्तित कर नया जाति प्रमाण आगामी आदेश तक जारी नहीं किया जाए। इन निर्देशों की अवहेलना करने पर संबंधित अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की चेतावनी भी दी गई है।

कैप्टन गुरविंदर सिंह बनाम राजस्थान राज्य समेत मामले से संबंधित दूसरे रिट में याचिकाकर्ता ने कहा है कि पहले मीणा स्पेलिंग से एसटी का प्रमाण पत्र ले चुके लोग अब उनमें सुधार कराकर मीना की स्पेलिंग से प्रमाण पत्र प्राप्त कर रहे हैं। समता आंदोलन समिति ने कोटा में राज्य सरकार के इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इस कदम से वास्तविक जाति भील, गरासिया, सहरिया जाति को फायदा होगा। जो इसके असली हकदार हैं।

“मीना मीणा विवाद” हल हेतु केन्द्र सरकार को सिफारिश करे – डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

“मीना मीणा विवाद” हल हेतु केन्द्र सरकार को सिफारिश करे – डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

1 COMMENTVIEWS:
Dr.-P.-Meena-Nirankush1
 राजस्थान सरकार “मीना मीणा विवाद” हल हेतु तुरंत संशोधित अधिसूचना
 जारी करवाने की केन्द्र सरकार को सिफारिश करे-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
 प्रेषिति : माननीय मुख्यमंत्री, राजस्थान सरकार, जयपुर।  
 
 विषय : मीना मीणा जनजाति विवाद को तुरन्त हल करने वास्ते संशोधित अधिसूचना जारी करवाने की केन्द्र सरकार को सिफारिश करने हेतु।
उपरोक्त विषय में ध्यान आद्भष्ट कर आपकी जानकारी में लाया जाना जरूरी हो गया है कि-
1. यह कि प्रारम्भ में काका कालेकर आयोग द्वारा ‘मीणा’ जाति को जनजातियों की सूची में शामिल करने की सिफारिश भारत सरकार को की गयी थी। लेकिन भारत सरकार के काले अंग्रेज बाबुओं ने मीणा जाति को अंग्रेजी में Mina अनुवाद करके जनजातियों की सूची में क्रम संख्या 9 पर Mina जनजाति के नाम से अधिसूचित कर दिया।
2. यह कि भारत सरकार द्वारा 1976 में राजभाषा अधिनियम लागू किये जाने के बाद मीणा जनजाति के अंग्रेजी में लिखे गये Mina नाम को सरकारी अनुवादकों ने हिन्दी में ‘मीना’ अनुवादित करके मीना/Mina के रूप में जनजातियों की सूची में फिर से अधिसूचित कर दिया।
3. यह कि इस प्रकार काका कालेकर आयोग द्वारा जिस ‘मीणा’ जाति को जनजातियों की सूची में शामिल करने की सिफारिश की गयी थी, उसे सरकार को संचालित करने वाले काले अंग्रेजों ने मीना/Mina जाति बना दिया। जिसके चलते सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर मीणा के साथ-साथ मीना शब्द भी प्रचलन में आ गया। इसी दौरान मीणा जाति के अंग्रेजी नहीं जानने वाले विद्यार्थियों को मीना/मीणा का अंग्रेजी अनुवाद सरकारी पाठशालाओं में सरकारी अध्यापकों द्वारा Meena लिखना सिखाया जाता रहा।
4. यह कि इस प्रकार काका कालेकर आयोग की सिफारिश पर जनजातियों की सूची में शामिल मीणा जाति को सरकार से वेतन प्राप्त करने वाले काले अंग्रेज बाबुओं और सरकारी अध्यापकों ने मीना/मीणा/Meena बना दिया। इसीलिये राजस्थान में किन्हीं अपवादों को छोड़कर सभी मीणाओं को मीना/मीणा/Meena नाम से ही जनजाति के जाति प्रमाण-पत्र बनाये जाते रहे हैं।
5. यह कि इतिहास साक्षी है कि स्वतन्त्रता संग्राम में बढचढकर भाग लेने वाले मीणा जनजाति के स्वाभिमानी लोग सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से अत्यधिक पिछड़े होने के बावजूद शुरू से ही अत्यधिक लगनशील, परिश्रमी और व्यसनमुक्त जीवन व्यतीत करते रहे हैं। इस कारण प्रारम्भ से ही मीणाओं के विद्यार्थियों ने शिक्षा और प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता अर्जित करके सरकारी नौकरियॉं हासिल की और अपनी प्रशासनिक, प्रबन्धकीय और तकनीकी बौद्धिक क्षमताओं का हर क्षेत्र में लोहा मनवाया। मगर आरक्षण विरोधी रुग्ण मानसिकता के शिकार और हजारों साल से व्यवस्था पर काबिज मनुवादियों, पूंतिपतियों और काले अंग्रेजों को मीणाओं की ये सांकेतिक प्रगति भी सहन नहीं हुई।
6. यह कि उक्त कारणों से मनुवादियों, पूंतिपतियों और काले अंग्रेजों के खुले समर्थन से आरक्षण विरोधी शक्तियों ने मीणाओं की उभरती प्रतिभाओं को आरक्षण से वंचित करने के दुराशय से मीणा जनजाति का आरक्षण समाप्त करने का सुनियोजित षड़यंत्र रच डाला। जिसके तहत न्यायिक प्रक्रिया का सहारा लेकर, प्रशासनिक गलतियों की सजा मीना/मीणा जनजाति की वर्तमान युवा पीढी को दी जा रही है।
7. यह कि उक्त तथ्यों के प्रकाश में और राजस्थान की मीणा जाति के बारे में मौलिक जानकारी रखने वाले हर एक राजस्थानी को इस बात का अच्छी तरह से ज्ञान है कि जनजातियों की सूची में शामिल मीना/Mina जाति को स्थानीय बोलियों में ‘मीणा/मीना, मैना/मैणा, मेंना/मेंणा, मेना/मेणा’ इत्यादि नामों से बोला और लिखा जाता रहा है। मीणाओं की वंशावली लेखक जागाओं की पोथियों में भी इसके प्रमाण मौजूद हैं।
8. यह कि उपरोक्तानुसार सब कुछ ज्ञात होते हुए भी राजस्थान सरकार द्वारा मीणा/Meena जनजाति के लोगों को जाति प्रमाण-पत्र जारी नहीं किये जाने और राज्य सरकार द्वारा मीना/मीणा/Mina/Meena जाति के लोगों के मीणा/Meena जाति के नाम से अब से पहले बनाये जा चुके जाति प्रमाण-पत्रों को मीना/Mina जाति के नाम से सुधार कर जारी नहीं करने के आदेश जारी किये जा चुके हैं। जिससे मीणा जनजाति की उभरती युवा प्रतिभाओं को आरक्षण से वंचित करने का मनुवादियों, पूंतिपतियों और काले अंग्रेजों का षड़यंत्र सफल होता दिख रहा है।
9. यह कि उपरोक्त समस्त हालातों के चलते शांति और सौहार्द के लिये ख्याति प्राप्त राजस्थान की आदिवासी मीना/मीणा/Mina/Meena जनजाति के लोगों में, विशेषकर नौकरी और उच्च शिक्षा की उम्मीद लगाये बैठे युवा वर्ग में आपकी लोकप्रिय सरकार के उक्त निर्णय के विरुद्ध भयंकर क्षोभ, आक्रोश और गुस्सा उत्पन्न हो रहा है। जो किसी भी लोकप्रिय और लोकतांत्रिक सरकार के लिये चिन्ताजनक है।
10. अत: उपरोक्तानुसार अवगत करवाते हुए ‘हक रक्षक दल’ के अजा, अजजा, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग के लाखों समर्थकों, कार्यकताओं और सदस्यों की ओर से राजस्थान सरकार को सुझाव प्रस्तुत है कि
(1) राज्य सरकार की ओर से जारी उक्त अलोकतांत्रिक आदेश को जनहित और मीणा जनजाति के उत्थान हेतु तुरन्त वापस लिया जावे।
(2) सामान्य जाति बताकर मीणा जाति के विरुद्ध दुष्प्रचार करने वालों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जावे और
(3) राज्य सरकार की ओर से केन्द्र सरकार को अविलम्ब निम्न सिफारिश की जावे-
‘‘जनजातियों की सूची में क्रम 9 पर मीना/Mina को ‘मीणा/मीना/Meena/Mina, मैना/मैणा/Maina, मेंना/मेंणा/Menna, मेना/मेणा/Mena’ जाति के नाम से संशोधित कर जारी किया जावे।’’
11. यह कि आशा है कि सरकार लोक कल्याण और सामाजिक न्याय की संवैधानिक अवधारणा के साथ-साथ, आगामी दीपावली के त्यौहार को ध्यान में रखते हुए उपरोक्तानुसार वैधानिक कदम उठाकर राजस्थान में न्यायप्रिय और लोकप्रिय सरकार संचालित होने का परिचय देगी।

How to Know HISTORY OF MEENA (मीणाओं का इतिहास ) by sukhdev bainada

HISTORY OF MEENA (मीणाओं का इतिहास ) by sukhdev bainada



                                                                        


SUKHDEV BAINADA (TODABHIM)
HISTORY OF MEENA
मीणा मुख्यतया भारत के राजस्थान राज्य में निवास करने वाली एक जाति]] है। मीणा जाति भारतवर्ष की प्राचीनतम जातियों में से मानी जाती है । वेद पुराणों के अनुसार मीणा जाति मत्स्य(मीन) भगवान की वंशज है। पुराणों के अनुसार चैत्र शुक्ला तृतीया को कृतमाला नदी के जल से मत्स्य भगवान प्रकट हुए थे। इस दिन को मीणा समाज जहां एक ओर मत्स्य जयन्ती के रूप में मनाया जाता है वहीं दूसरी ओर इसी दिन संम्पूर्ण राजस्थान में गणगौर कात्योहार बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। मीणा जाति का गणचिह्न मीन (मछली) था। मछली को संस्कृत में मत्स्य कहा जाता है। प्राचीनकाल में मीणा जाति के राजाओं के हाथ में वज्र तथा ध्वजाओं में मत्स्य का चिह्न अंकित होता था, इसी कारण से प्राचीनकाल में मीणा जाति को मत्स्य माना गया। प्राचीन ग्रंथों में मत्स्य जनपद का स्पष्ट उल्लेख है जिसकी राजधानी विराट नगर थी,जो अब जयपुर वैराठ है। इस मस्त्य जनपद में अलवर,भरतपुर एवं जयपुर के आस-पास का क्षेत्र शामिल था। आज भी मीणा लोग इसी क्षेत्र में अधिक संख्या में रहते हैं। मीणा जाति के भाटों(जागा) के अनुसार मीणा जाति में 12 पाल,32 तड़ एवं 5248 गौत्र हैं।मध्य प्रदेश के भी लगभग २३ जिलो मे मीणा समाज निबास करता है ।
मूलतः मीना एक सत्तारूढ़ [जाति]] थे, और मत्स्य, यानी, राजस्थान या मत्स्य संघ के शासक थे,लेकिन उनका पतन स्य्न्थिअन् साथ आत्मसात से शुरू हुआ और पूरा जब ब्रिटिश सरकार उन्हे "आपराधिक जाति" मे दाल दिया।.यह कार्रवाई, राजस्थान में राजपूत राज्य के साथ उनके गठबंधन के समर्थन मे लिया गया था।
मीणा राजा एम्बर (जयपुर) सहित राजस्थान के प्रमुख भागों के प्रारंभिक शासक थे।पुस्तक 'संस्कृति और भारत जातियों की एकता "RSMann द्वारा कहा गया है कि मीना, राजपूतों के समान एक क्षत्रिय जाति के रूप में मानी जाती है।प्राचीन समय में राजस्थान मे मीना वंश के रजाओ का शासन था। मीणा राज्य मछली (राज्य) कहा जाता था। संस्कृत में मत्स्य राज्य का ऋग्वेद में उल्लेख किया गया था. बाद में भील और मीना, (विदेशी लोगों) जो स्य्न्थिअन्, हेप्थलिते या अन्य मध्य एशियाई गुटों के साथ आये थे,मिश्रित हुए। मीना मुख्य रूप से मीन भग्वान और (शिव) कि पुजा करते है। मीनाओ मे कई अन्य हिंदू जति की तुलना में महिलाओं के लिए बेहतर अधिकार हैं। विधवाओं और तलाकशुदा का पुनर्विवाह एक आम बात है और अच्छी तरह से अपने समाज में स्वीकार कर लिया है। इस तरह के अभ्यास वैदिक सभ्यता का हिस्सा हैं। आक्रमण के वर्षों के दौरान,और १८६८ के भयंकर अकाल में,तबाह के तनाव के तहत कै समुह बने। एक परिणाम के रूप मे भूखे परिवारों को जाति और ईमानदारी का संदेह का परित्याग करने के लिए पशु चोरी और उन्हें खाने के लिए मजबूर होना परा।.

अनुक्रम

   [दिखाएँ

वर्ग

मीणा जाति प्रमुख रूप से निम्न वर्गों में बंटी हुई है
  1. जमींदार या पुरानावासी मीणा : जमींदार या पुरानावासी मीणा वे हैं जो प्रायः खेती एवं पशुपालन का कार्य बर्षों से करते आ रहे हैं। ये लोग राजस्थान के सवाईमाधोपुर,करौली,दौसा व जयपुर जिले में सर्वाधिक हैं|
  2. चौकीदार या नयाबासी मीणा : चौकीदार या नयाबासी मीणा वे मीणा हैं जो अपनी स्वछंद प्रकृति के कारण चौकीदारी का कार्य करते थे। इनके पास जमींने नहीं थीं, इस कारण जहां इच्छा हुई वहीं बस गए। उक्त कारणों से इन्हें नयाबासी भी कहा जाता है। ये लोग सीकर, झुंझुनू, एवं जयपुर जिले में सर्वाधिक संख्या में हैं।
  3. प्रतिहार या पडिहार मीणा : इस वर्ग के मीणा टोंक, भीलवाड़ा, तथा बूंदी जिले में बहुतायत में पाये जाते हैं। प्रतिहार का शाब्दिक अर्थ उलट का प्रहार करना होता है। ये लोग छापामार युद्ध कौशल में चतुर थे इसलिये प्रतिहार कहलाये।
  4. रावत मीणा : रावत मीणा अजमेर, मारवाड़ में निवास करते हैं।
  5. भील मीणा : ये लोग सिरोही, उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर एवं चित्तोड़गढ़ जिले में प्रमुख रूप से निवास करते हैं।

मीणा जाति के प्रमुख राज्य निम्नलिखित थे

  1. खोहगंग का चांदा राजवंश
  2. मांच का सीहरा राजवंश
  3. गैटोर तथा झोटवाड़ा के नाढला राजवंश
  4. आमेर का सूसावत राजवंश
  5. नायला का राव बखो [beeko] देवड़वाल [द॓रवाल] राजवंश
  6. नहाण का गोमलाडू राजवंश
  7. रणथम्भौर का टाटू राजवंश
  8. नाढ़ला का राजवंश
  9. बूंदी का ऊसारा राजवंश
  10. मेवाड़ का मीणा राजवंश
  11. माथासुला ओर नरेठका ब्याड्वाल
  12. झान्कड़ी अंगारी (थानागाजी) का सौगन मीना राजवंश
प्रचीनकाल में मीणा जाति का राज्य राजस्थान में चारों ओर फ़ैला हुआ था|

मीणा राजाओं द्वारा निर्मित प्रमुख किले

  1. आमागढ़ का किला
  2. हथरोई का किला
  3. खोह का किला
  4. जमवारामगढ़ का किला

मीणा राजाओं द्वारा निर्मित प्रमुख बाबड़ियां

  1. भुली बाबड़ी ग्राम सरजोली
  2. मीन भग्वान बावदी,सरिस्का,अल्वर्
  3. पन्ना मीणा की बाबड़ी,आमेर
  4. खोहगंग की बाबड़ी,जयपुर

मीणा राजाओं द्वारा निर्मित प्रमुख मंदिर :

  1. दांतमाता का मंदिर, जमवारामगढ़- सीहरा मीणाओं की कुल देवी
  2. शिव मंदिर, नई का नाथ, बांसखो,जयपुर,नई का नाथ,mean bagwan the. bassi बांसखो,जयपुर
  3. मीन भग्वान मन्दिर्,बस्सि,जयपुर्
  4. बांकी माता का मंदिर,टोडा का महादेव,सेवड माता -ब्याडवाल मीणाओं का
  5. बाई का मंदिर, बड़ी चौपड़,जयपुर
  6. मीन भगवान का मंदिर, मलारना चौड़,सवाई माधोपुर (राजस्थान)
  7. मीन भगवान का भव्य मंदिर, चौथ का बरवाड़ा,सवाई माधोपुर (राजस्थान)
  8. मीन भगवान का मंदिर, खुर्रा,लालसोट, दौसा (राजस्थान)

      • वरदराज विष्णु को हीदा मीणा लाया था दक्षिण से
आमेर रोड पर परसराम द्वारा के पिछवाड़े की डूंगरी पर विराजमान वरदराज विष्णु की एतिहासिक मूर्ति को साहसी सैनिक हीदा मीणा दक्षिण के कांचीपुरम से लाया था। मूर्ति लाने पर मीणा सरदार हीदा के सम्‌मान में सवाई जयसिंह ने रामगंज चौपड़ से सूरजपोल बाजार के परकोटे में एक छोटी मोरी का नाम हीदा की मोरी रखा। उस मोरी को तोड़ अब चौड़ा मार्ग बना दिया लेकिन लोगों के बीच यह जगह हीदा की मोरी के नाम से मशहूर है। देवर्षि श्री कृष्णभट्ट ने ईश्वर विलास महाकाव्य में लिखा है, कि कलयुग के अंतिम अश्वमेध यज्ञ केलिए जयपुर आए वेदज्ञाता रामचन्द्र द्रविड़, सोमयज्ञ प्रमुखा व्यास शर्मा, मैसूर के हरिकृष्ण शर्मा, यज्ञकर व गुणकर आदि विद्वानों ने महाराजा को सलाह दी थी कि कांचीपुरम में आदिकालीन विरदराज विष्णु की मूर्ति के बिना यज्ञ नहीं हो सकता हैं। यह भी कहा गया कि द्वापर में धर्मराज युधिष्ठर इन्हीं विरदराज की पूजा करते था। जयसिंह ने कांचीपुरम के राजा से इस मूर्ति को मांगा लेकिन उन्होंने मना कर दिया। तब जयसिंह ने साहसी हीदा को कांचीपुरम से मूर्ति जयपुर लाने का काम सौंपा। हीदा ने कांचीपुरम में मंदिर के सेवक माधवन को विश्वास में लेकर मूर्ति लाने की योजना बना ली। कांचीपुरम में विरद विष्णु की रथयात्रा निकली तब हीदा ने सैनिकों के साथ यात्रा पर हमला बोला और विष्णु की मूर्ति जयपुर ले आया। इसके साथ आया माधवन बाद में माधवदास के नाम से मंदिर का महंत बना। अष्टधातु की बनी सवा फीट ऊंची विष्णु की मूर्ति के बाहर गण्शोजी व शिव पार्वती विराजमान हैं। सार संभाल के बिना खन्डहर में बदल रहे मंदिर में महाराजा को दर्शन का अधिकार था। अन्य लोगों को महाराजा की इजाजत से ही दर्शन होते थै। महंत माधवदास को भोग पेटे सालाना 299 रुपए व डूंगरी से जुड़ी 47 बीघा 3 बिस्वा भूमि का पट्टा दिया गया । महंत पं. जयश्रीकृष्ण शर्मा के मुताबिक उनके पुरखा को 341 बीघा भूमि मुरलीपुरा में दी थी जहां आज विधाधर नगर बसा है। अन्त्या की ढाणी में 191 बीघा 14 बिस्वा भूमि पर इंडियन आयल के गोदाम बन गए।
नोट:- मीणा जाति के इतिहास की विस्तॄत जानकारी हेतु लेखक श्री लक्ष्मीनारायण झरवाल की पुस्तक "मीणा जाति और स्वतंत्रता का इतिहास" अवश्य पढ़े।

मध्ययुगीन इतिहास
प्राचहिन समय मे मीणा राजा आलन सिंह ने,एक असहाय राजपूत माँ और उसके बच्चे को उसके दायरे में शरण दि। बाद में, मीणा राजा ने बच्चे, ढोलाराय को दिल्ली भेजा,मीणा राज्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए। राजपूत ने इस्एहसान के लिए आभार मे राजपूत सणयन्त्रकारिओ के साथ आया और दीवाली पर निहत्थे मीनाओ कि लाशे बिछा दि,जब वे पित्र तर्पन रस्में कर रहे थे।मीनाओ को उस् समय निहत्था होना होता था। जलाशयों को"जो मीनाऔ के मृत शरीर के साथ भर गये। "[Tod.II.281] और इस प्रकार कछवाहा राजपूतों ने खोगओन्ग पर विजय प्राप्त की थी,सबसे कायर हर्कत और राजस्थान के इतिहास में शर्मनाक।
एम्बर के कछवाहा राजपूत शासक भारमल हमेशा नह्न मीना राज्य पर हमला करता था, लेकिन बहादुर बड़ा मीणा के खिलाफ सफल नहीं हो सका। अकबर ने राव बड़ा मीना को कहा था,अपनी बेटी कि शादी उससे करने के लिए। बाद में भारमल ने अपनी बेटी जोधा की शादी अकबर से कर दि। तब अकबर और भारमल की संयुक्त सेना ने बड़ा हमला किया और मीना राज्य को नस्त कर दिया। मीनाओ का खजाना अकबर और भारमल के बीच साझा किया गया था। भारमल ने एम्बर के पास जयगढ़ किले में खजाना रखा ।
कुछ अन्य तथ्य
कर्नल जेम्स- टॉड के अनुसार कुम्भलमेर से अजमेर तक की पर्वतीय श्रृंखला के अरावली अंश परिक्षेत्र को मेरवाड़ा कहते है । मेर+ वाड़ा अर्थात मेरों का रहने का स्थान । कतिपय इतिहासकारों की राय है कि " मेर " शब्द से मेरवाड़ा बना है । यहां सवाल खड़ा होता है कि क्या मेर ही रावत है । कई इतिहासकारो का कहना है किसी समय यहां विभिन्न समुदायो के समीकरण से बनी 'रावत' समुदाय का बाहुल्य रहा है जो आज भी है । कहा यह भी जाता है कि यह समुदाय परिस्थितियों और समय के थपेड़ों से संघर्ष करती कतिपय झुंझारू समुदायों से बना एक समीकरण है । सुरेन्द्र अंचल अजमेर का मानना है कि रावतों का एक बड़ा वर्ग मीणा है या यो कह लें कि मीणा का एक बड़ा वर्ग रावतों मे है । लेकिन रावत समाज में तीन वर्ग पाये जाते है -- 1. रावत भील 2. रावत मीणा और 3. रावत राजपूत । रावत और राजपूतो में परस्पर विवाह सम्बन्ध के उदाहरण मुश्किल से हि मिल पाए । जबकि रावतों और मीणाओ के विवाह होने के अनेक उदाहरण आज भी है । श्री प्रकाश चन्द्र मेहता ने अपनी पुस्तक " आदिवासी संस्कृति व प्रथाएं के पृष्ठ 201 पर लिखा है कि मेवात मे मेव मीणा व मेरवाड़ा में मेर मीणाओं का वर्चस्व था।
महाभारत के काल का मत्स्य संघ की प्रशासनिक व्यवस्था लौकतान्त्रिक थी जो मौर्यकाल में छिन्न- भिन्न हो गयी और इनके छोटे-छोटे गण ही आटविक (मेवासा ) राज्य बन गये । चन्द्रगुप्त मोर्य के पिता इनमे से ही थे । समुद्रगुप्त की इलाहाबाद की प्रशस्ति मे आ...टविक ( मेवासे ) को विजित करने का उल्लेख मिलता है राजस्थान व गुजरात के आटविक राज्य मीना और भीलो के ही थे इस प्रकार वर्तमान ढूंढाड़ प्रदेश के मीना राज्य इसी प्रकार के विकसित आटविक राज्य थे ।
वर्तमान हनुमानगढ़ के सुनाम कस्बे में मीनाओं के आबाद होने का उल्लेख आया है कि सुल्तान मोहम्मद तुगलक ने सुनाम व समाना के विद्रोही जाट व मीनाओ के संगठन ' मण्डल ' को नष्ट करके मुखियाओ को दिल्ली ले जाकर मुसलमान बना दिया ( E.H.I, इलियट भाग- 3, पार्ट- 1 पेज 245 ) इसी पुस्तक में अबोहर में मीनाओ के होने का उल्लेख है (पे 275 बही) इससे स्पष्ट है कि मीना प्राचीनकाल से सरस्वती के अपत्यकाओ में गंगा नगर हनुमानगढ़ एवं अबोहर- फाजिल्का मे आबाद थे ।

रावत एक उपाधि थी जो महान वीर योध्दाओ को मिलती थी वे एक तरह से स्वतंत्र शासक होते थे यह उपाधि मीणा, भील व अन्य को भी मिली थी मेर मेरातो को भी यह उपाधिया मिली थी जो सम्मान सूचक मानी जाती थी मुस्लिम आक्रमणो के समय इनमे से काफी को मुस्लिम बना...या गया अतः मेर मेरात मेहर मुसमानो मे भी है ॥ 17 जनवरी 1917 में मेरात और रावत सरदारो की राजगढ़ ( अजमेर ) में महाराजा उम्मेद सिह शाहपूरा भीलवाड़ा और श्री गोपाल सिह खरवा की सभा मेँ सभी लोगो ने मेर मेरात मेहर की जगह रावत नाम धारण किया । इसके प्रमाण के रूप में 1891 से 1921 तक के जनसंख्या आकड़े देखे जा सकते है 31 वर्षो मे मेरो की संख्या में 72% की कमी आई है वही रावतो की संख्या में 72% की बढोत्तर हुई है । गिरावट का कारण मेरो का रावत नाम धारण कर लेना है ।
सिन्धुघाटी के प्राचीनतम निवासी मीणाओ का अपनी शाखा मेर, महर के निकट सम्बन्ध पर प्रकाश डालते हुए कहा जा सकता है कि -- सौराष्ट्र (गुजरात ) के पश्चिमी काठियावाड़ के जेठवा राजवंश का राजचिन्ह मछली के तौर पर अनेक पूजा स्थल " भूमिलिका " पर आज भी देखा जा सकता है इतिहासकार जेठवा लोगो को मेर( महर,रावत) समुदाय का माना जाता है जेठवा मेरों की एक राजवंशीय शाखा थी जिसके हाथ में राजसत्ता होती थी (I.A 20 1886 पेज नः 361) कर्नल टॉड ने मेरों को मीना समुदाय का एक भाग माना है (AAR 1830 VOL- 1) आज भी पोरबन्दर काठियावाड़ के महर समाज के लोग उक्त प्राचीन राजवंश के वंशज मानते है अतः हो ना हो गुजरात का महर समाज भी मीणा समाज का ही हिस्सा है । फादर हैरास एवं सेठना ने सुमेरियन शहरों में सभ्यता का प्रका फैलाने वाले सैन्धव प्रदेश के मीना लोगो को मानते है । इस प्राचीन आदिम निवासियों की सामुद्रिक दक्षता देखकर मछलि ध्वजधारी लोगों को नवांगुतक द्रविड़ो ने मीना या मीन नाम दिया मीलनू नाम से मेलुहा का समीकरण उचित जान पड़ता है मि स्टीफन ने गुजरात के कच्छ के मालिया को मीनाओ से सम्बन्धीत बताया है दूसरी ओर गुजरात के महर भी वहां से सम्बन्ध जोड़ते है । कुछ महर समाज के लोग अपने आपको हिमालय का मूल मानते है उसका सम्बन्ध भी मीनाओ से है हिमाचल में मेन(मीना) लोगो का राज्य था । स्कन्द में शिव को मीनाओ का राजा मीनेश कहा गया है । हैरास सिन्धुघाटी लिपी को प्रोटो द्रविड़ियन माना है उनके अनुसार भारत का नाम मौहनजोदड़ो के समय सिद था इस सिद देश के चार भाग थे जिनमें एक मीनाद अर्थात मत्स्य देश था । फाद हैरास ने एक मोहर पर मीना जाती का नाम भी खोज निकाला । उनके अनुसार मोहनजोदड़ो में राजतंत्र व्यवस्था थी । एक राजा का नाम " मीना " भी मुहर पर फादर हैरास द्वारा पढ़ा गया ( डॉ॰ करमाकर पेज न॰ 6) अतः कहा जा सकता है कि मीना जाति का इतिहास बहुत प्राचीन है इस विशाल समुदाय ने देश के विशाल क्षेत्र पर शासन किया और इससे कई जातियो की उत्पत्ती हुई और इस समुदाय के अनेक टूकड़े हुए जो किसी न किसी नाम से आज भी मौजुद है ।
आज की तारीख में 10-11 हजार मीणा लोग फौज में है बुदी का उमर गांव पूरे देश मे एक अकेला मीणो का गांव है जिसमें 7000 की जनसंख्या मे से 2500 फौजी है टोंक बुन्दी जालौर सिरोहि मे से मीणा लोग बड़ी संख्या मे फौज मे है। उमर गांव के लोगो ने प्रथम व द्वीतिय विश्व युध्द लड़कर शहीदहुए थे शिवगंज के नाथा व राजा राम मीणा को उनकी वीरता पर उस समय का परमवीर चक्र जिसे विक्टोरिया चक्र कहते थे मिला था जो उनके वंशजो के पास है । देश आजाद हुआ तब तीन मीणा बटालियने थी पर दूर्भावनावश खत्म कर दी गई थी
तूंगा (बस्सी) के पास जयपुर नरेश प्रतापसिंह और माधजी सिन्धिया मराठा के बीच 1787 मे जो स्मरणिय युध्द हुआ उसमें प्रमुख भूमिका मीणो की रही जिसमे मराठे इतिहास मे पहली बार जयपुर के राजाओ से प्राजित हुए थे वो भी मीणाओ के कारण इस युध्द में राव चतुर और पेमाजी की वीरता प्रशंसनीय रही । उन्होने चार हजार मराठो को परास्त कर मीणाओ ने अपना नाम अमर कर दिया । तूँगा के पास अजित खेड़ा पर जयराम का बास के वीरो ने मराठो को हराया इसके बदले जयराम का बास की जमीन व जयपुर खजाने मे पद दिया गया ।

जैन मुनि मगन सागर

जैन मुनि मगन सागर
जैन मुनि मगन सागर मीणा गोठवाल (ग्राम – उणियारा, जिला टोंक)
आपके जीवन वृत्त के विषय में हम विगत पृष्ठों में पढ़ चुके हैं l आप टोंक जिले के उणियारा के पास उखलाना गाँव के रहने वाले थे l पटवारी से अक्षर ज्ञान सीखकर आप संस्कृत के साथ अनेक प्रादेशिक भाषाओँ के प्रकाण्ड पंडित बन गए l आपने सात खण्डों में संस्कृत भाषा में मीन पुराण लिखा जिसका संक्षिप्त हिंदी मीन पुराण की भूमिका रूप में डग (झालावाड़) निवासी रामसिंह नौरावत के सौजन्य से प्रकाशित हुआ l

आपने इस ग्रन्थ में प्राचीनकाल से मध्यकाल तक मीणा जाति की गौरवगाथा का वर्णन किया है l आपके कथनानुसार मीणा जाति शुद्ध रूप से क्षत्री और आर्यवंश परम्परा से सम्बंधित है l उनकी दृष्टि में राजपूत क्षत्रिय नहीं है l इनका प्रादुर्भाव ग्यारहवीं सदी में हुआ l

विद्वान् जैन मुनि ने अनेक शास्त्रों का उद्धरण देकर यह सिद्ध किया है कि मीणा जाति प्राचीनतम आदिवासी जनजाति है l

मुनिजी का सबसे महत्वपूर्ण कार्य मीणा जाति में अपने प्राचीन गौरव का संचार करना था l इस जाति की जागृति के लिए आपने सर्वप्रथम १९४४ में मीणा समाज का नीम के थाने में विराट मीणा सम्मलेन का आयोजन किया, जिनका विस्तृत उल्लेख हम पूर्व पृष्ठों में कर चुके हैं l मुनिजी के इस उपकार का मीणा समाज सदा ॠणी रहेगा l 

How to Kmow मीणा समाज को राजस्थान में आरक्षण कैसे मिला

मीणा समाज को राजस्थान में आरक्षण कैसे मिला

देश के आजाद होते ही हमारे नेताओं ने मन्थन किया कि स्वतंत्र भारत का शासन और प्रशासन कैसा हो और तय किया कि जनतंत्र के लिये आवश्यक है कि विभिन्न वर्गों में व्याप्त सामाजिक व आर्थिक असमानता को दूर किया जाये तथा सदियों से दलित,शोषित व पिछडे वर्गों को आगे लाकर उनको देश के चलाने में बराबर के भागीदार बनाया जाये। इसी विचार ने शासन और प्रशासन में आरक्षण की व्यवस्था को जन्म दिया।मीणा-समाज भी सदियों से शोषित रहा है और जनजाति-वर्ग का रहा है जिसका जिक्र पिछले सवासो वर्षों से भी ज्यादा पुराने सरकारी दस्तावेजों तथा इतिहास की किताबों में है।
लेकिन 26 जनवरी 1950 को जब भारत का संविधान लागू हुआ और आरक्षण की सूचियां निकलीं तो मीणा-समाज का नाम जनजाति वर्ग की सूची से गायब था। मीणा-समाज में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई और 1950 में ही जयपुर में गांधी जयंती के दिन राजस्थान आदिवासी मीणा महापंचायत के तत्वाधान में एक विशाल मीणा-सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन में सर्वसम्मति से निश्चय किया कि विगत वर्षों की जनगणना रिपोर्टों ऐतिहासिक दस्तावेजों एवं पुस्तकों तथा राजकीय अभिलेखों के आधार पर यह सिद्ध किया जाए कि मीणा जाति राजस्थान की मूल आदिवासी जाति है और इसे अनुसूचित जनजातियों की सूची में सम्मिलित न किया जाना इसके साथ घोर अन्याय है। इसके लिये एक ज्ञापन तैयार करने का दायित्व महापंचायत के अध्यक्ष श्री गोविन्दराम मीणा को सौंपा गया। 1 नवम्बर,1950 को महापंचायत के एक प्रतिनिधि मंडल ने दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू,गृहमंत्री एवं प्रमुख संसद सदस्यों को ज्ञापन दिया। प्रतिनिधि मंडल में अध्यक्ष श्री गोविन्दराम मीणा के अतिरिक्त शाहजहांपुर(अलवर) के सूबेदार सांवत सिंह,कोटपुतली(जयपुर) के रामचन्द्र जागीरदार,जयपुर शहर के किशनलाल वर्मा,कोटपुतली(जयपुर) के अरिसाल सिंह मत्स्य व अलवर के बोदनराम थे। इस प्रतिनिधि-मंडल ने तीन सप्ताह दिल्ली में रहकर मंत्रियों व सांसदों को अनुसूचित जनजातियों में मीणों को न रखे जाने पर तीव्र असंतोष व्यक्त किया। गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने ज्ञापन को बडी बारीकी से पढा और आधे घण्टे तक प्रतिनिधि-मंडल की बात सुनी। यह आश्वासन भी दिया कि राजस्थान सरकार की गलती से यह भूल हुई है और जब भी कभी अनुसूचित जनजातियों की सूची में संशोधन किया जायेगा,मीणा जाति को भी इसमें शामिल कर लिया जायेगा।
प्रतिनिधि मंडल ने फ़िर भी ढिलाई नहीं बरती और सांसदों पर दबाब बनाये रखा जिस पर जोधपुर (राजस्थान) के लोकनायक जयनारायण व्यास जो उस समय सांसद थे,ने इस मांग का पुरजोर समर्थन करते हुए लोकसभा में एक प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव पर बहस हुई और अनेक सांसदों ने जिसमें मध्य प्रदेश के सांसद हरिविष्णु कामथ थे,मीणों के पक्ष में जोरदार पैरवी की। इसका परिणाम यह हुआ कि गृहमंत्री ने बहस का जबाब देते हुऐ बताया कि भारत सरकार इसके लिये एक आयोग गठित करेगी। साथ ही भारत सरकार ने राजस्थान सरकार की टिप्पणी मांगी तो राजस्थान सरकार ने 1951 की मई में केवल उदयपुर,डूंगरपुर,बांसवाडा,पाली और जालौर जिलों के मीणों को ही अनुसूचित जनजाति मानने की सिफ़ारिश की। राजस्थान आदिवासी मीणा महापंचायत ने भारत सरकार से घोर प्रतिरोध किया और मांग की कि सारे राजस्थान की मीणा जाति को अनुसूचित जनजाति में सम्मिलित किया जाये।
इसी बीच भारत सरकार ने 1953 में काका कालेलकर आयोग की नियुक्ति की घोषणा की। इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर भारत सरकार ने अनुसूचित जनजाति(संशोधन) विधेयक 1956 लोकसभा में पेश किया जिसमें अन्य जातियों के साथ-साथ राजस्थान की मीणा जाति का नाम भी जनजाति की सूची में रखा गया। संसद ने इस विधेयक को यथावत पास कर दिया जिसको भारत के राष्ट्रपति ने 25/09/1956 को स्वीकृति दे दी। इस तरह राजस्थान के मीणों को जनजाति वर्ग का आरक्षण मिला।
जिस ज्ञापन के आधार पर राजस्थान के मीणों को जनजाति वर्ग में शामिल किया गया,उसमें वर्णित दस्तावेजों में मीणा जाति को एबओरीजनल एवं प्रिमिटिव ट्राइब बताया गया वे निम्नानुसार हैं:-
1. जनगणना रिपोर्ट 1871,वोल्यूम दो पेज-48(मारवाड दरबार के आदेश से प्रकाशित)
2. जनगणना रिपोर्ट 1901, वोल्यूम 25, पेज-158
3. जनगणना रिपोर्ट 1941, पेज-41
4. इम्पीरियल गजेटियर ऑफ़ इन्डिया प्रोविन्सीयल सीरीज राजपूताना(पेज-38)
5. इम्पीरियल गजेटियर वोल्यूम प्रथम(द्वारा सी सी वाटसन) पेज-223
6. एनाल्स एण्ड एन्टीक्वीटीज ऑफ़ राजपूतना सेन्ट्रल एण्ड वेस्टन राजपूत ऐस्टेट ऑफ़ इण्डिया-लेखक कर्नल जेम्स टॉड
7. "जाति भासकर" लेखक विद्याभारती पं.ज्वाला प्रसाद मिश्र(पेज-101)
8. "मूल भारतवासी और आर्य" लेखक श्री स्वामी वेधानन्द महारिथर
9. "राजपूताने का इतिहास" लेखक पं. गौरीशंकर हीरा चन्द ओझा
10. "उदयपुर राज्य का इतिहास" (पेज-316) लेखक पं.गौरीशंकर हीरा चन्द ओझा
12. "मीन पुराण भूमिका" लेखक मुनि मगन सागर जी

मीणा समाज की कुल देवियां

मीणा समाज की कुल देवियां

मीणा समाज की कुल देवियां.

आदिम कल से चली आ रही प्रथानुसार प्राचीन कबीलों के  गोत्रनुसार कुलदेवी:-


प्रमुख गोत्रो के धराड़ी कुल देवी
आदिवासी मीणा गोत्र
कुलदेवी
स्थान
पीठ malwas,नांगल (लालसोट) दौसा
गुढा चन्द्रजी तह॰ टोडाभीभ करौली
कुल देवता "नासीर"
सपोटरा करौली
खोहगंग (खो नागोरियान झालाना पहाड़ी) जयपुर
जीणमाता (जयंति देवी)
हर्ष पहाड़ी (रेवासा) गौरेया सीकर
बारवाल(बारवाड़)
चौथ का बरवाड़ा सवाई माधोपुर
दुगाय(दुर्गामाता)
गुढ़ा बरथल तह॰ निवाई जि॰ टौंक । मलारना चौड़ बौली सवाई माधोपुर में भी है ।
ब्रह्माणी माता (प्याली माता),vistada mata
आमेर पहाड़ी जयपुर,पल्लु(हनुमान गढ़),मण्डावरी दौसा ।
माताशुला रायसर तह॰ जमुवारामगढ़ जयपुर
बरवा की पहाड़ी नारायणी धाम तह॰ राजगढ़ अलवर
देवरोतह॰ बस्सीजयपुर
आमेर पहाड़ी जयपुर
आशोजाई माता (चंड माता)
चतरपुरा तह॰ सांभरलेक जयपुर
चिताणु तहसील आमेर,जिला- जयपुर
बीजासण पहाड़ी तह॰ इन्द्रगढ़ जिला बुंदी
कैला पहाड़ी तह॰ सपोटरा करौली । अब  कैला माता को टाटू आदि अन्य गोत्र भी मानने लग गये
अलवर
गुमानो माता
गांव खुर्रा मण्डावरी लालसोट दौसा
गांव डोब तह॰ लालसोट जि॰ दौसा ।
गांव निठारा की पाल त॰ सराड़ा जि॰ उदयपुर ।
काली माता (कालका)
निठाऊवा (बांसवाड़ा),कालीसिंध के किनारे (पीपलदा)दिगोद कोटा ।
हरमोर (कलासुआ)
जावर माइन्स उदयपुर ।
गांव पीलोदा तह॰ गंगापुर सीटी जि॰ सवाई माधोपुर ।
गाँव - टिगरिया ..तह बामनवास सवाई माधोपुर
मैणसी(आसावरी)
कूकस खोरा मेवाल दिल्ली रोड़ आमेर जयपुर । पहले अनासन देवी को भी पूजा था ।
बुढ़ादित दिगोद कोटा ।
मोरा माता(चन्द्रगुप्त मौर्य की मा का नाम मोरा था)
रायसाना गढ़मोरा करौली ,गांव घुमणा के घुणावतो ने भी मोरा माता का मंदिर बना रखा है वैसे उनकी कुलदेवी लहकोड़ माता है । गांव बिलौना कला लालसोट रोड़ और कमालपुरागढ़मोरा के पास इस गोत्र के बड़े गांव है ।
सीहरा (सीरा)
मण्डल,माडिया]]
मण्डलगडभीलवाडा


गांव घुमणा और रायसाना गढ़मोरा जि॰ करौलीमाता स्थान :- गांव घुमणा और रायसाना गढ़ मोरा जि॰ करौली । घुणावत बाद में लहकोड़ माता गांव पीलेदा त॰ गंगापुर सीटी सवाई माधोपुर को भी मानने लग गये ।